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ऐप बेस्ड कैब बनी रेलवे की कमाई का जरिया

(वार्ता) ऐप बेस्ड कैब सर्विसेज देने वाली ओला और ऊबर जैसी कंपनियां भारतीय रेलवे के लिए कमाई का नया जरिया बन गई है। इन कंपनियां की सर्विस कई शहरों में है, इसलिए रेलवे स्टेशनों पर पार्किंग स्पेस लेने के लिए कॉन्ट्रैक्टर्स और अन्य टैक्सी ऑपरेटर्स से ये कंपनियां कहीं अधिक रेट दे रही हैं। जानकारी के मुताबिक बेंगलुरु डिविजन के स्टेशनों के लिए हाल ही में हुई एक डील में रेलवे ने ओला और ऊबर को 100 से कम कैब के लिए पार्किंग स्पेस 15 करोड़ रुपये एक वर्ष के लिए दी गई है। इन जगहों पर किसी भी समय लगभग 100 कैब एक साथ पार्क की जा सकती हैं।

पहले इन ड्राइवर्स को सड़कों पर अपनी कैब खड़ी करने के लिए मजबूर होना पड़ता था। हाल के वर्षों में रेलवे ने अपना रेवेन्यू बढ़ाने के लिए कुछ नए जरिए खोजे हैं। कैब कंपनियों को पार्किंग स्पेस लीज पर देना भी इनमें शामिल है। रेलवे अपनी ट्रेनों के लिए एडवर्टाइजिंग राइट्स की बिडिंग भी कर रही है।

जानकारी के मुताबिक रेलवे के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया, ‘एक डिविजन के 5-6 स्टेशनों पर हम तीन वर्ष के लिए 51 करोड़ रुपये (17 करोड़ रुपये प्रति वर्ष) की डील करने में सफल रहे हैं। हम दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, हैदराबाद, चेन्नई और अन्य बड़े शहरों में भी इसी तरह की डील करेंगे। रेलवे की योजना स्टेशनों और उनके साथ लगती जमीन को ओला और ऊबर जैसी कंपनियों को पार्किंग लॉट के लिए देने के जरिए एक वर्ष में न्यूनतम 500 करोड़ रुपये कमाने की है।

इससे ऐप बेस्ड कैब सर्विस देने वाली कम्पनियो को भी फ़ायदा होगा, पार्किंग लॉट से ओला और ऊबर को रेलवे स्टेशनों और उनके आसपास के इलाकों में बड़ी संख्या में पैसेंजर्स को सर्विस देने में मदद मिलेगी। रेलवे इन कंपनियों को एंट्री पॉइंट पर पैसेंजर्स को पिक करने के लिए कियॉस्क बनाने की भी इजाजत देगी। इस बारे में इकनॉमिक टाइम्स की ओर से भेजे गए प्रश्नों का ओला और ऊबर ने जवाब नहीं दिया।

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