13/4/2019/चंडीगढ़/देश की आजादी के बाद 55 साल तक शासन करने वाली कांग्रेस की सरकारों ने जलियांवाला बाग के लिए एक ट्रस्ट की स्थापना कर दी। शहीदों की एक यादगार का निर्माण कर दिया, लेकिन यहां शहीदी का जाम पीने वाले सपूतों के बारे में कोई जानकारी उपलब्ध नहीं करवाई। देश की आजादी के लिए जान देने वाले जलियांवाला बाग के शहीदों के परिजनों को एक शताब्दी बीत जाने के बावजूद भी इंसाफ नहीं मिला है। 13 अप्रैल 2019 को जलियांवाला बाग नरसंहार को 100 साल हो गए, पर लालाजी का परिवार आज भी उन्हें स्वतंत्रता सेनानी का दर्जा दिलाने के लिए जद्दोजहद कर रहा है। जलियांवाला बाग में हर साल प्रशासन श्रद्धांजलि समारोह का आयोजन करता है, लेकिन इसमें हिस्सा लेने के लिए अब तक उन्हें निमंत्रण नहीं मिला। 13 अप्रैल को जब गुरुनगरी के लोग ब्रिटिश हुकूमत के विरुद्ध जलियांवाला बाग में विरोध कर रहे थे, तब डायर ने बिना कोई चेतावनी दिए निहत्थे भारतीयों पर फायरिंग कर दी। उस नरसंहार की यादें आज भी लोगों के जेहन में ताजा हैं। ब्रिटिश सरकार ने उस समय गुरुनगरी के दो बड़े नेता सत्यपाल और सैफुद्दीन किचलू को सेहर से बाहर निकाल कर धर्मशाला के योल कैंप में भेजने के आदेश जारी कर दिए। गुरुनगरी के लोगों ने इसका विरोध किया। इसके बाद ब्रिटिश हुकूमत ने लोगों पर गोलियां चलाई। ऊंचे पुल के नजदीक दस लोगों ने शहादत का जाम पिया। इससे गुस्साए लोगों ने विरोध प्रदर्शन किया और पांच अंग्रेज अधिकारियों की हत्या कर दी गई। रॉलेट एक्ट के विरोध में गुरुनगरी के लोग छह अप्रैल से ही विरोध प्रदर्शन कर रहे थे। नौ अप्रैल को रामनवमी के पर्व पर पहली बार हिंदू-मुस्लिम समुदाय ने एक साथ झांकियां निकली। जलियांवाला बाग नरसंहार को सौ साल हो चुके हैं, लेकिन अभी तक उस हत्याकांड में मरने वालों को शहीद का दर्जा नहीं मिला है।
