27/03/18: संवेदनाओं से खेलना रंगमंच का पसंदीदा काम है, कहते हैं – जब तक मानवीय संवेदना है, संघर्ष है, रंगमंच जीवित रहेगा… लेकिन आज रंगमंच से हमारी बढ़ती हुई दूरी, रंगमंच को ज़िद पर जीना सिखा रही है… विश्व रंगमंच दिवस पर रंगमंच के महत्व को वापस लाने की एक छोटी कोशिश सुदर्शन न्यूज की।
यह दुनिया एक रंगमंच है और हम रंगमंच की कठपुतलीयाँ…. जिसने भी यह लाईन लिखी है वो जानते थे की रंगमंच हमारे समाज का आईना है । आज बढ़ती हुई अभ्रदता और भावनाओं का बाजारीकरण ही सारी समस्याओं की मूल जड़ है। रंगमंच के माध्यम से एक बेहतर समाज का निर्माण किया जाता था पर बदलते समाज के साथ वो हँसाते हँसाते थोड़ा रुलाकर और रुलाते रुलाते थोड़ा हँसाकर , बहुत कुछ सिखा देने वाली कहानियाँ अब फ़ीकी पड़ने लगी हैं। मुन्नी, शीला और न जाने क्या-क्या लोगों को रंगमंच से कहीं ज्यादा लुभावना लगने लगा है। भरतमुनी के नाट्यशास्त्र मे सभी रसों का अपना महत्व बताया गया है जैसे- श्रृंगार रस, हास्य रस, वीर रस, रौद्र रस, भयानक रस, अद्भुत रस, शांत रस, वात्सल्य रस और भक्ति रस खैर इन सब से परे entertainment, entertainment और entertainment ही सबकी पहली पसंद बनता जा रहा है।
इस विश्व रंगमंच दिवस पर कला का सदुपयोग और महान परंपरा को जीवित रखने का प्रण लेकर सुर्दशन न्यूज़ उन सभी रंगमंच के अद्वितीय कलाकारों को नमन करता हैं…. जिनकी ज़िद पर , आज भी ज़िंदा है रंगमंच।