11-3-018/न्यूज़ एजेंसी /गाजियाबाद / हरनंदी (¨हडन) के किनारे स्थित सुराना गांव में शनिवार को हुई सगाई उन लोगों के लिए नजीर है जो दहेज में कार, मोटरसाइकिल, लाखों की रकम मांगकर लड़की पक्ष को कमाई का जरिया समझते हैं। यहां लड़के पक्ष की शर्त पर लड़की पक्ष ने लड़के को दहेज में 100 पौधे दिए। जिन्हें ¨हडन नदी के किनारे लगवाकर पर्यावरण शुद्ध करने का प्रयास किया जाएगा।सुराना गांव निवासी मूलचंद आर्य दिल्ली स्थित आइआइटी से रिटायर्ड कर्मी हैं। उनकी दो बड़ी बेटियों की शादी पहले हो चुकी है। जबकि तीसरे नंबर के बेटे भरत की शादी गाजियाबाद के विवेकानंद नगर निवासी मोनिका के साथ तय हुई है। मोनिका एमकॉम बी.लिब करने के बाद बैंकिंग की तैयारी कर रही हैं। वहीं, भरत आर्य गुरुग्राम स्थित आइबीएम कंपनी में कार्यरत हैं। 12 मार्च को भरत आर्य व मोनिका की शादी होनी है। भरत व उनके माता-पिता की लड़की पक्ष से दहेज नहीं लेने की बात तय हुई थी। लड़की पक्ष ने पुरखों की परंपरा का हवाला देकर दहेज में कुछ न कुछ लेने का दबाव बनाया। इस पर भरत ने लड़की पक्ष से कहा कि यदि उन्हें दहेज ही देना है तो वे उसे 100 फलदार पौधे दहेज स्वरूप दान में दें।शनिवार को गांव सुराना में भरत आर्य की सगाई समारोह कार्यक्रम था। तय शर्त के मुताबिक सगाई समारोह में लड़की पक्ष ने दहेज में सौ पौधे दिए। खास बात यह थी कि पौधों के साथ भरत के होने वाले साले ने जब भरत को सोने की चेन देनी चाही तो भरत ने चेन लेने से भी साफ इन्कार कर दिया। जिद करने पर भरत ने कहा कि यदि वे उसे चेन ही देना चाहते हैं तो वे चेन की कीमत के पौधे खरीदकर उन्हें हरनंदी नदी के किनारे लगवाएं ताकि आने वाली पीढ़ी चैन की सांस ले सके। इस सगाई के गवाह बने ग्रामीणों ने भरत व उनके माता माता की जमकर सराहना की। यह सगाई क्षेत्र में चर्चा का विषय बनी हुई है। भरत ने बताया कि दहेज में मिले 100 पौधों को वे हरनंदी नदी के किनारे लगवाएंगे। भरत ने बताया कि माता-पिता से मिली शिक्षा के अनुसार वे प्रकृति से बचपन से बहुत प्रेम करते हैं। वे अपने स्तर पर पहले भी पौधे खरीदकर निजी जमीन और ¨हडन नदी के किनारे लगाते रहे हैं। उनके मुताबिक पौधों को लगाकर ही प्रकृति का बचाया जा सकता है। अन्यथा दूषित होते वातावरण में आगे चलकर सांस लेना भी मुश्किल हो जाएगा। भरत आर्य ने बताया कि मैंने और मेरी होने वाली पत्नी मोनिका ने फैसला लिया गया है कि आगामी 12 मार्च को होने वाली शादी में फेरे मंडप के नीचे नहीं, बल्कि पेड़ के नीचे लिए जाएंगे।विवेकानंद नगर निवासी मोनिका के पिता मूलचंद एनसीसी विभाग में सरकारी कर्मचारी हैं। उन्होंने बताया कि दहेज में पौधे देकर वे अच्छा महसूस कर रहे हैं। क्योंकि बेटी का पिता होने का आज उन्हें अफसोस नहीं, बल्कि गर्व महसूस हो रहा है। उनका कहना है कि यदि सभी लोग इसी विचारधारा के हो जाएं तो निश्चित रूप से समाज तरक्की करेगा और किसी को भी बेटी पैदा होने पर अफसोस नहीं होगा। न ही कोई भी बेटी को बोझ नहीं समझेगा।
