24/03/18/माँ दुर्गाजी की सातवीं शक्ति कालरात्रि के नाम से जानी जाती हैं….माँ कालरात्रि दुष्टों का विनाश करने वाली हैं…दानव, दैत्य, राक्षस, भूत, प्रेत आदि इनके स्मरण मात्र से ही भयभीत होकर भाग जाते हैं…..ये ग्रह-बाधाओं को भी दूर करने वाली हैं….इनके उपासकों को अग्नि-भय, जल-भय, जंतु-भय, शत्रु-भय, रात्रि-भय आदि कभी नहीं होते….इनकी कृपा से मनुष्य सर्वथा भय-मुक्त हो जाता है…..माँ कालरात्रि के स्वरूप-विग्रह को अपने हृदय में अवस्थित करके मनुष्य को एकनिष्ठ भाव से उपासना करनी चाहिए…. हमें निरंतर उनका स्मरण, ध्यान और पूजा करना चाहिए…. माँ की नासिका के श्वास-प्रश्वास से अग्नि की भयंकर ज्वालाएँ निकलती रहती हैं…इनका वाहन गर्दभ यानि गदहा है… ये ऊपर उठे हुए दाहिनी हाथ की वरमुद्रा से सभी को वर प्रदान करती हैं… दाहिनी तरफ का नीचे वाला हाथ अभयमुद्रा में है…बाईं तरफ के ऊपर वाले हाथ में लोहे का काँटा और नीचे वाले हाथ में खड्ग यानि कटार है….माँ कालरात्रि का स्वरूप देखने में अत्यंत भयानक है….लेकिन ये सदैव शुभ फल ही देने वाली हैं…इसी कारण इनका एक नाम ‘शुभंकारी’ भी है….अतः इनसे भक्तों को किसी प्रकार भी भयभीत और आतंकित होने की आवश्यकता नहीं है……मां कालरात्रि को भक्तों का शत्-शत् नमन…..