29/03/18/ आज का ये दिन, आत्मसम्मान का है…बुराई के खिलाफ आवाज़ उठाने का है…अपने हक के लिए लड़ने का है…क्योंकि आज के ही दिन मंगल पाण्डेय ने सिपाही विद्रोह की शुरुवात कर भारत का भविष्य बदलने की चिंगारी भड़काई थी…
29 मार्च 1857 को सब्र का बाँध लांघकर…मंगल पाण्डेय ने भारत की बुलंद आवाज़ को गोली में कैद कर , अंग्रेज़ो के सीने में उतारा था, और अंग्रेज़ो के कट्टरपन का मुँह तोड़ जवाब दिया था। आज का ये दिन मिसाल है , उन सबके लिए जो सोचते हैं , कि अकेले कुछ नहीं बदला जा सकता । आज का ये दिन उदाहरण हैं उन लोगों के लिए , जो आराम से अखबार पढ़कर बोलते हैं ..जी इस देश का तो कुछ नहीं हो सकता । ऐसे लोगों को ये घटना बहुत कुछ सिखाएगी…..
29 मार्च 1857 को , बैरकपुर परेड मैदान कलकत्ता के निकट, मंगल पाण्डेय, रेजीमेण्ट के अफ़सर लेफ़्टीनेण्ट बाग पर हमला कर उसे घायल कर दिया। मंगल पाण्डेय ने अपने साथियों को खुलेआम विद्रोह करने के लिये कहा । किसी के ना मानने पर उन्होने अपनी बंदूक से अपने प्राण त्याग कर दृढ़ निश्चय का प्रमाण दिया। 6 अप्रैल 1857 को मंगल पाण्डेय का कोर्ट मार्शल कर दिया गया और 8 अप्रैल को फ़ांसी दे दी गयी। मंगल पांडे द्वारा लगायी गयी विद्रोह की ये चिंगारी बुझी नहीं। एक महीने बाद ही 10 मई 1857 को मेरठ की छावनी में बगावत हो गयी..और ये बगावत देखते ही देखते पूरे उत्तरी भारत में फैल गया जिससे अंग्रेजों को स्पष्ट संदेश मिल गया कि अब भारत पर राज करना उतना आसान नहीं है जितना वे समझ रहे थे। इसके बाद ही हिन्दुस्तान में चौंतीस हजार सात सौ पैंतीस अंग्रेजी कानून यहाँ की जनता पर लागू किये गये ताकि मंगल पाण्डेय जैसा कोई सैनिक दोबारा भारतीय शासकों के विरुद्ध बगावत न कर सके। इस बात से ये तो साफ है.. जब तक बुराई के खिलाफ आवाज़ नहीं उठाई जाएगी , अच्छाई कमज़ोर ही तड़पती रहेगी, इस देश को मंगल पाण्डेय जैसी और आवाज़े चाहिए, क्यूँकि बुराई से ज्यादा , अच्छाई का मौन देश को खोखला बनाता हैं।