5/12/2016 / नोएडा। सेक्टर-125 स्थित एमिटी विश्वविद्यालय में सोमवार को विश्व मृदा दिवस मनाया गया। इस मौके पर किसानों को भूमि की उर्वरता के बारें में जागरूक किया गया। इस कार्यक्रम शुरूआत योजना आयोग के पूर्व सलाहकार डाॅ. एसएस खन्ना और हिसार एग्रीकल्चर विश्वविद्यालय के पूर्व निदेशक डाॅ. बीएस चिल्लर द्वारा दीप जलाकर किया गया। कार्यक्रम में उत्तर प्रदेश, दिल्ली, पंजाब, हरियाणा और हिमांचल प्रदेश से आए किसानों को भूमि की उर्वरता के बारें में विशेषज्ञों द्वारा जानकारी दी गई।
योजना आयोग के पूर्व सलाहकार डाॅ. एसएस खन्ना ने कहा कि आजादी के समय देश में अनाज की उत्पादकता 53 मिलीयन टन थी और अब यह बढ़ कर 257 मिलीयन टन हो गई है। भूमि में अंधाधुध उर्वरकों और कीटनाषक दवाओं का प्रयोग न केवल भूमि के लिए हानिकारक है बल्कि हमारे स्वास्थ्य पर गलत प्रभाव डालता है। देश में प्राचीन काल से भूमि की पूजा होती रही है। उन्होंने कहा कि उर्वरक और कीटनाषक दवाओं के प्रयोग से पहले मृदा की जांच कराना जरूरी है। जिससे यह पता चल सके कि किस वस्तु की कितनी जरूरत है और उतना ही प्रयोग करना चाहिए। भूमि की उत्पादन क्षमता को बढ़ाने के लिए अधिक से अधिक कंपोस्ट खाद का प्रयोग करना चाहिए। मृदा में विभिन्न मिनरल, हवा और पानी का संतुलन जरूरी है। आज बढ़ते उर्वरकों से मृदा की उत्पादकता कम हो रही है। सभी के सहयोग से मृदा का संरक्षण होगा और हमें मिलकर इस कार्य को करना है।
डाॅ. बीएस चिल्लर ने कहा कि पिछले दिनों फैले वायु प्रदूषण का एक कारक हरियाणा और पंजाब के किसानों द्वारा जलाई गई बचे फसलों के हिस्से थे। हमें इस बात को भी जानना चाहिए कि क्या कारण है, जो किसान उन बचे हिस्सो को जलाते है। उन्होने कहा कि किसानों से बात करने पर उन्होने पाया कि धान आदि फसलों के कटने के बाद उनके पास दूसरी बोवाई के लिए वक्त कम रह जाता है, जिससे दूसरी फसल को बो सके। इससे प्रदूषण तो बढ़ता है और मृदा की उर्वरकता भी नष्ट होती है। हम सभी को इस समस्या के निवारण के लिए कार्य करना चाहिए।