विधवा यदि पुनर्विवाह कर ले तो भी वह मृतक पति की कानूनी वारिस की परिभाषा में आती है। वह पहले पति की मौत हो जाने पर क्लेम करने के लिए कानूनी तौर पर दावेदार है। यदि बीमा कंपनी की विधवा के पुनर्विवाह के बाद कानूनी दावेदार न होने की दलील मानी जाए तो यह विधवा के पुनर्विवाह के अधिकार में अड़चन साबित होगी जो न तो जनहित में होगा न समाज हित में। पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट के जस्टिस सुधीर मित्तल ने यह व्यवस्था बीमा कंपनी द्वारा दाखिल मोटर एक्सीडेंट क्लेम ट्रिब्यूनल के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका की सुनवाई करते हुए दी है।
बीमा कंपनी ने याचिका दाखिल करते हुए मोटर एक्सीडेंट क्लेम ट्रिब्यूनल के फैसले को चुनौती दी थी। इसमें मृतक की पत्नी के दोबारा शादी होने से जुड़ी रिपोर्ट को सबूत के तौर पर पेश किया गया था। बीमा कंपनी ने कहा कि दोबारा शादी करने के चलते महिला आश्रित और कानूनी वारिस की परिभाषा से बाहर हो गई है। हाईकोर्ट ने सभी तथ्यों पर विचार के बाद बीमा कंपनी की अपील को खारिज कर दिया।
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हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि समाज की भलाई के लिए बनाए गए कानून की व्याख्या इस प्रकार होनी चाहिए कि कानून को बनाने के उद्देश्य को पूरा किया जा सके। मोटर व्हीकल एक्ट के सेक्शन 166 में विधवा के पुनर्विवाह और कानूनी वारिस होने को लेकर स्थिति स्पष्ट नहीं है। ऐसे में इसे निर्धारित करना जरूरी है। विधवा पति की मौत के बाद उसकी कानूनी वारिस होती है और उसका ऐसा हिस्सा होती है जो दोबारा शादी के बाद भी अलग नहीं हो सकती।
जनहित और समाजहित में हो कानून की परिभाषा
इसके साथ ही कानून को परिभाषित करते हुए यह देखना सबसे जरूरी होता है कि यह जनहित और समाज के हित में हो। यदि बीमा कंपनी की दलील मान विधवा के पुनर्विवाह करने के चलते उसके मृतक पति के कानूनी वारिस होने का दर्जा खत्म किया जाता है तो यह न तो समाज के हित में होगा न जन साधारण के। हाईकोर्ट ने ऐसे में विधवा को पुनर्विवाह के बाद भी मृतक पति का कानूनी वारिस माना।