26/03/18/उत्तरप्रदेश :चिपको आंदोलन की आज 45वीं सालगिरह है…..पेड़-पौधों को बचाने का अपने आप में ये अनोखा आंदोलन था… 1970 के दशक में इस आंदोलन की शुरुआत हुई थी जिसे पूरे गांधीवादी तरह से किया गया… इसकी खासियत ये थी कि बिना हिंसा और उपद्रव के ये आंदोलन किया गया था… शांति के साथ पेड़ों को न काटने का आंदोलन चलाया गया था… बिलकुल शांति से पेड़ों को न काटने का आंदोलन चलाया गया… 70 के दशक में पूरे भारत में जंगलों की कटाई के विरोध में एक आंदोलन शुरू हुआ जिसे चिपको आंदोलन के नाम से जाना जाता है… इस आंदोलन का नाम चिपको आंदोलन इसलिए पड़ा क्योंकि लोग पेड़ों को बचाने के लिए उनसे चिपक या लिपट जाते थे… और ठेकेदारों को उन्हें नही काटने देते थे… 1974 में शुरु हुए विश्व विख्यात ‘चिपको आंदोलन’ की प्रणेता गौरा देवी थी… गौरा देवी ‘चिपको वूमन’ के नाम से भी मशहूर हैं… 1973 के अप्रैल महीने में ऊपरी अलकनंदा घाटी के मंडल गांव में इसकी शुरूआत हुई और धीरे-धीरे पूरे उत्तरप्रदेश के हिमालय वाले जिलों में फैल गया… इस आंदोलन में बिश्नोई समाज का बड़ा हाथ था… बिश्नोई समाज का नाम भगवान विष्णु के नाम पर पड़ा है… इस समाज के ज्यादातर लोग जंगल और राजस्थान के रेगिस्तान के पास रहते हैं… और चिपको आंदोलन की 45वीं सालगिरह पर सुदर्शन न्यूज आपसे विनती करता है कि अपने घर के आस-पास पेड़ लगाए और पेड़ को काटे जाने से भी रोकें… क्योंकि पेड़ हैं तो हम है…
