5/12/2016 / ग्रेटर नोएडा। नोटबंदी ने दिहाड़ी मजदूरी करने वालों की कमर तोड़ कर रख दिया है। काम न मिलने के चलते दिहाड़ी मजदूर फांकाकशी करने के लिए मजबूर हैं। किसी के घर में सुबह चूल्हा जलता है, तो शाम को उम्मीद नहीं रहती है कि खाना मिलेगा या नहीं। हालात यह कि बच्चों का किसी तरह पेट भरने के बाद दिहाड़ी मजदूर एक टाइम भूखे सोने को मजबूर हैं। करीब ढाई हजार दिहाड़ी मजदूर प्रतिदिन काम की तलाश में घर से निकल कर डेल्टा-1 लेबर चौक पर एकत्र होते हैं, लेकिन किस्मत वालों को ही काम मिलता है। चौराहे पर आकर रूकने वाले हर वाहन को दर्जनों लेबर इस उम्मीद में घेर लेते हैं कि उन्हें काम मिल जाए, लेकिन जब वाहन चालक चौराहे पर उतर कर सिगरेट या पान मसाला खरीदने लगता है तो ये मायूस हो जाते हैं। इनका कहना है कि एक महीने में औसतन 5 दिन काम मिल सका है। काम के इंतजार में जब दोपहर हो जाती है, तो दिहाड़ी मजदूर वापस घर लौट जाते हैं।
