Home » धर्म कर्म » आज के दिन माँ कात्यायनी की करे पूजा मिलेगा मनचाहा फल और वर रोगादि से निवृत्ति।। षष्ठम कात्यायनी ,

आज के दिन माँ कात्यायनी की करे पूजा मिलेगा मनचाहा फल और वर रोगादि से निवृत्ति।। षष्ठम कात्यायनी ,

मां कात्यायनी को सबसे फलदायी माना जाता है, लेकिन साथी ही ये दानवों, असुरों और पापी जीवधारियों का नाश करने वाली देवी भी कहलाती हैं।

जानिए कौन हैं मां कात्यायनी

कात्यायनी महर्षि कात्यायन की कठिन तपस्या से प्रसन्न होकर उनकी इच्छानुसार उनके यहां पुत्री के रूप में पैदा हुई थीं। महर्षि कात्यायन ने सर्वप्रथम इनकी पूजा की थी, इसीलिए ये कात्यायनी के नाम से प्रसिद्ध हुईं। मां कात्यायनी अमोद्य फलदायिनी हैं।

कात्यायनी ही हैं महिषासुरमर्दनी

देवी कात्यायनी जी देवताओं ,ऋषियों के संकटों कोदूर करने लिए महर्षि कात्यायन के आश्रम में उत्पन्न होती हैं। महर्षि कात्यायन जी ने देवी पालन पोषण किया था। जब महिषासुर नामक राक्षस का अत्याचार बहुत बढ़ गया था, तब उसका विनाश करने के लिए ब्रह्मा, विष्णु और महेश ने अपने अपने तेज़ और प्रताप का अंश देकर देवी को उत्पन्न किया था और ॠषि कात्यायन ने भगवती जी कि कठिन तपस्या, पूजा की इसी कारण से यह देवी कात्यायनी कहलायीं।

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महर्षि कात्यायन जी की इच्छा थी कि भगवती उनके घर में पुत्री के रूप में जन्म लें। देवी ने उनकी यह प्रार्थना स्वीकार की तथा अश्विन कृष्णचतुर्दशी को जन्म लेने के पश्चात शुक्ल सप्तमी। अष्टमी और नवमी, तीन दिनोंतक कात्यायन ॠषि ने इनकी पूजा की। दशमी को देवी ने महिषासुर का वध किया ओर देवों को महिषासुर के अत्याचारों से मुक्त किया
महिषासुर के बाद शुम्भ और निशुम्भ नामक असुरों ने अपने असुरी बल के घमंड में आकर इंद्र के तीनों लोकों का राज्य और धनकोष छीन लिया। शुम्भ और निशुम्भ नामक राक्षस ही नवग्रहों को बंधक बनाकर इनके अधिकार का उपयोग करने लगे। वायु और अग्नि का कार्य भी वही करने लगे। उन दोनों ने सभी देवताओं को अपमानित कर राज्य भ्रष्ट घोषित कर पराजित तथा अधिकारहीन बनाकर स्वर्ग से निकाल दिया।

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उन दोनों महान असुरों से तिरस्कृत देवताओं ने अपराजिता देवी का स्मरण किया कि हे जगदम्बा, आपने हम लोगों को वरदान दिया था कि आपत्ति काल में आपको स्मरण करने पर आप हमारे सभी कष्टों का तत्काल नाश कर देंगी। यह प्रार्थना लेकर देवता हिमालय पर्वत पर गए और वहां जाकर विष्णुमाया नामक दुर्गा की स्तुति करने लगे। इसके बाद मां कात्यायिनी ने ही इन दोनों से भी देवताओं को मुक्ति दिलाई।

ऐसा है मां का स्वरूप

इनका वाहन सिंह है और इनकी चार भुजाएं हैं। इनके एक हाथ में तलवार है और एक हाथ में पुष्प है।

मंत्र: चंद्र हासोज्ज वलकरा शार्दूलवर वाहना।

कात्यायनी शुभंदद्या देवी दानव घातिनि।।

चढ़ावा: इस दिन प्रसाद में मधु यानी शहद का प्रयोग करना चाहिए। देवी मां को प्रसन्न करने के लिए गुड का दान करना चाहिए और नारंगी रंग के कपड़ें पहनने चाहिए।

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ऐसे करें पूजा: दुर्गा पूजा के छठे दिन भी सर्वप्रथम कलश और देवी कात्यायनी जी की पूजा की जाती है। पूजा की विधि शुरू करने पर हाथों में फूल लेकर देवी को प्रणाम कर देवी के मंत्र का ध्यान जरूर करें। इस दिन दुर्गा सप्तशती के ग्यारहवें अध्याय का पाठ करना चाहिए। पुष्प और जायफल देवी को अर्पित करना चाहिए। देवी मां के साथ भगवान शिव की भी पूजा करनी चाहिए। जो चीजे भगवान शिव को प्रिय हैं वो चीजें देवी मां को चढ़ानी चाहिए।

दूर करती हैं ये कष्ट

सभी देवियों में मां कात्यायनी को सबसे फलदायिनी माना जाता है। महर्षि कात्यायन की तपस्या से प्रसन्न होकर आदिशक्ति ने खुद उनके यहां पुत्री के रूप में जन्म लिया था और षष्ठम नवरात्रि के दिन मां कात्यायनी की पूजा और आराधना होती है। आपको बता दें कि मां कात्यायिनी की आराधना से भक्त का हर काम सरल एवं सुगम होता है। जीवन की ज्यादातर रुकावटें और परेशानियां मां कात्यायिनी की आराधना से दूर हो जाती हैं।

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1. विवाह बाधा होती हैं दूर

देवी कात्यायनी का तंत्र में अति महत्व है। विवाह बाधा निवारण में इनकी साधना चमत्कारिक लाभदायक सिद्ध होती है। जिन कन्याओं के विवाह में विलम्ब हो रहा हो या विवाह बाधा आ रही हो, ग्रह बाधा हो उन्हें कात्यानी यन्त्र की प्राण प्रतिष्ठा करवाकर उस पर निश्चित दिनों तक निश्चित संख्या में कात्यायनी देवी के मंत्र का जप अति लाभदायक होता है। इससे विवाह बाधा दूर हो जाती है और जल्दी ही विवाह का मार्ग प्रशस्त होता है। जो खुद न कर सके वे अच्छे कर्मकांडी से इसका अनुष्ठान करवाकर लाभ उठा सकते हैं।

 

 

कवच-

कात्यायनी मुखं पातु कां स्वाहास्वरूपिणी।

ललाटे विजया पातु मालिनी नित्य सुन्दरी॥
कल्याणी हृदयं पातु जया भगमालिनी॥

2. रोग होते हैं दूर

यदि आपके परिवार अथवा आप स्वयं या आपके परिचित में कोई व्यक्ति लंबे समय तक बीमार रहता हो, डाक्टर स्वयं बीमारी को पकड़ नहीं पा रहे हों। तो आज के दिन यह उपाय शुरू किया जा सकता है। एक चौकी पर लाल कपड़ा बिछा दें। दुर्गा यंत्र स्थापित करें। सफेद कपड़े में सात कौडियां, सात गोमती चक्र, सात नागकेसर के जोडे, सात मुट्ठी चावल बांध कर यंत्र के सामने रख दें। धूप-दीप, नैवेद्य, पुष्प और अक्षत अर्पित करने बाद एक माला ‘ऊं ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे। ऊं कात्यायनी देव्यै नम:’ एक माला शुक्र के बीज मंत्र की और एक माला शनि मंगलकारी गायत्री मंत्र की। ऐसा आज से लेकर 43 दिन तक नियमित करें। ऐसी मानता है कि कैसी भी बीमारी होगी। उससे छुटकारा मिल जाएगा।

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3. भय से मिलेगा छुटकारा

यदि हमेशा भय बना रहता है, यदि छोटी सी भी बात पर पैर कांपने लगते हैं, यदि कोई भी निर्णय नहीं ले पाते हैं तो छठे नवरात्र से यह उपाय शुरू करें। घी का दीपक जला कर एक माला ‘ऊं ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे। ऊं कात्यायनी देव्यै नम:Ó मंत्र का सुबह और शाम जाप करें। रात्रि सोते समय पीपल के पत्ते पर इस मंत्र को केसर से पीपल की लकडी की कलम से लिख कर अपने सिरहाने रख दें और सुबह मां के मंदिर में रखकर आ जाएं। भय से छुटकारा मिल जाएगा।

4. ग्रह पीड़ा निवारण

जिस जातक की जन्म कुंडली में शुक्र प्रतिकूल भाव, प्रतिकूल राशि या प्रतिकूल ग्रहों के साथ स्थित हो उन जातक-जातिकाओं को मां कात्यायनी के मंत्र का जाप करने से ग्रह प्रतिकूलता का निवारण हो जाता है।

5. इन दो राशियों के दूर होते हैं दु:ख

वृषभ और तुला राशि के लोग मां कात्यायनी की आराधना करें तो संपूर्ण समस्याओं का निवारण हो जाएगा। देवी कात्यायनी अमोद्य फलदायिनी हैं इनकी पूजा अर्चना द्वारा सभी संकटों का नाश होता है, मां कात्यायनी दानवों तथा पापियों का नाश करने वाली हैं। देवी कात्यायनी जी के पूजन से भक्त के भीतर शक्ति का संचार होता है। इस दिन साधक का मन आज्ञा चक्र में स्थित रहता है। योग साधना में इस आज्ञा चक्र का अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है। साधक का मन आज्ञा चक्र में स्थित होने पर उसे सहजभाव से मां कात्यायनी के दर्शन प्राप्त होते हैं। साधक इस लोक में रहते हुए अलौकिक तेज से युक्त रहता है।

किसी भी प्रकार की समस्या समाधान के लिए पं. वेदप्रकाश पटैरिया शास्त्री जी (ज्योतिष विशेषज्ञ) जी से सीधे संपर्क करें = 9131735636
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